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अबजद | शाही शायरी
abjad

नज़्म

अबजद

सलीम शहज़ाद

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नज़्म की तख़्ती पे ग़ज़ल के हिज्जे
पंजों पे गाजनी के बिलकते बिलकते

रिश्तों की अबजद पे हिरासाँ खड़े थे
लम्हों की रसोई में हर्फ़ों की हंडिया

अहद-ए-नज़ार से जुड़ गई
न ग़ज़ल की तख़्ती

न नज़्म के हिज्जे बस अबजद थी
कि रिश्तों की जदवल में

पड़ी पड़ी हर्फ़ों की शनाख़्त भूल गई