वक़्त की धुँद में लिपटे मंज़र
और सन्नाटा दिल के अंदर
बारी बारी साँझ सवेरे
इक अंजाना ख़ौफ़ जगाएँ
अन-होनी को ध्यान में लाएँ
दोनों मेरे ख़्वाब चुराएँ
नज़्म
आज़ार
मुबीन मिर्ज़ा
नज़्म
मुबीन मिर्ज़ा
वक़्त की धुँद में लिपटे मंज़र
और सन्नाटा दिल के अंदर
बारी बारी साँझ सवेरे
इक अंजाना ख़ौफ़ जगाएँ
अन-होनी को ध्यान में लाएँ
दोनों मेरे ख़्वाब चुराएँ