EN اردو
आज़ार | शाही शायरी
aazar

नज़्म

आज़ार

मुबीन मिर्ज़ा

;

वक़्त की धुँद में लिपटे मंज़र
और सन्नाटा दिल के अंदर

बारी बारी साँझ सवेरे
इक अंजाना ख़ौफ़ जगाएँ

अन-होनी को ध्यान में लाएँ
दोनों मेरे ख़्वाब चुराएँ