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आज़ादी के दीवाने | शाही शायरी
aazadi ke diwane

नज़्म

आज़ादी के दीवाने

अनवर साबरी

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हम आज़ादी के दीवाने ये दुनिया फ़र्ज़ानों की
इस पापी संसार में बाबा कौन सुने दीवानों की

मस्जिद मंदिर सब के अंदर राज ग़ुलामी करती है
दौलत ले कर नाम ख़ुदा का घर घर धरना धरती है

कोठी बंगले गोरे साँपों की इक ऐसी बस्ती है
जो भारत के भोले-भाले इंसानों को डसती है

उन से बच कर चलना बाबा ये क़ातिल ज़हरीले हैं
सूरत के मोहन हैं भीतर से सब नीले पीले हैं

शैदा हूँ आज़ादी का आज़ाद-नगर में डेरा है
क्या बतलाऊँ मेरे भय्या कौन जहाँ में मेरा है

वो मेरा जो आज़ादी की ज़ुल्फ़ों का दीवाना है
वो मेरा जो शम्-ए-वतन का शैदाई परवाना है

वो मेरा जो मौत के आगे बे-जिगरी से तनता है
वो मेरा जो आप न हो कुछ जिस की सब कुछ जनता है

वो मेरा जो हँसते हँसते फाँसी पर चढ़ जाता है
वो मेरा जो मौत से भी दो चार क़दम बढ़ जाता है

आज़ादी के तालिब सुन ले मौत ही मेरी मंज़िल है
तू दुनिया का बन सकता है मेरा बनना मुश्किल है