EN اردو
आवारगी | शाही शायरी
aawargi

नज़्म

आवारगी

अख़लाक़ अहमद आहन

;

ख़ुश्क पत्तों की सेज पर
सर्द रातों के दरमियाँ

तेरी यादों की छाँव में
लर्ज़ां लर्ज़ां तरसाँ तरसाँ

माज़ी का कोई लम्हा
हाल की दहलीज़ पर

आहिस्ता आहिस्ता ग़लताँ ग़लताँ
क़दम रखता है

तो
यख़-बस्ता जुनूँ

पा-ब-जौलाँ
रू-ब-रू दौड़ जाता है