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आसूदा हाली के जतन | शाही शायरी
aasuda haali ke jatan

नज़्म

आसूदा हाली के जतन

जमशेद अाफ़ाक

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ज़ात की आसूदगी के सब जतन करता रहूँ
ताएरों के संग उड़ कर

आसमाँ की झिलमिलाती नीलगूँ सी गोद में इख़्लास की गर्मी
मोहब्बत की तपिश को

हर घड़ी मैं ढूँढता फिरता रहूँ
या कभी अपने ख़यालों की रिदा ओढ़े

मैं धरती के खुले सीने पे सर रख कर
और अपनी बाँहें उस के गर्द लिपटाने की कोशिश में

जहाँ भर के गिले-शिकवे घने बालों में
आँखों से छिने मोती समझ के डालता जाया करूँ

या कभी मैं ना-रसाई के समुंदर में
किसी छोटी सी मछली की तरह

अपने तहफ़्फ़ुज़ और अपनी ज़िंदगानी को
ख़ुशी के ख़ूबसूरत आसमानी सात रंगों के

किसी नादीदा साँचे में
बदल देने का ऐसा मक्र-ओ-फ़न करता रहूँ

ज़ात की आसूदगी के सब जतन करता रहूँ