रोज़-ए-रौशन जा चुका, हैं शाम की तय्यारियाँ
उड़ रही हैं आसमाँ पर ज़ाफ़रानी साड़ियाँ
शाम रुख़्सत हो रही है रात का मुँह चूम कर
हो रही हैं चर्ख़ पर तारों में कुछ सरगोशियाँ
जल्वे हैं बेताब पर्दे से निकलने के लिए
बन सँवर कर आ रही हैं आसमाँ की रानियाँ
नौ उरूस-ए-शब ने पहना है लिबास-ए-फ़ाख़िरा
आसमानी पैरहन में कहकशानी धारियाँ
कारचोबी शामियाने में रची बज़्म-ए-नशात
साज़ ने अंगड़ाई ली बजने लगी हैं तालियाँ
ला-जवर्दी फ़र्श पर है मुश्तरी ज़ोहरा का रक़्स
नैल-तन कृष्ण के पहलू में मचलती गोपियाँ
दस्त-ओ-पा की नर्म व ख़ुश-आहंग हल्की जुन्बिशें
या फ़ज़ा में नाचती हैं गुनगुनाती बिजलियाँ
सरमदी नग़्मात से सारी फ़ज़ा मामूर है
नुत्क़-ए-रब-ए-ज़ुल-मिनन हैं रात की ख़ामोशियाँ
नींद सी आँखों में आती है झुका जाता है सर
सुन रहा था देर से मैं आसमानी लोरियाँ
नज़्म
आसमानी लोरियाँ
मख़दूम मुहिउद्दीन