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आसमाँ ख़ाक-दाँ | शाही शायरी
aasman KHak-dan

नज़्म

आसमाँ ख़ाक-दाँ

मोहम्मद अनवर ख़ालिद

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राख उड़ाती हुई
और बिन ख़ाक-दाँ कोई जलता नहीं

इस सितारे के उस पार भी कोई जलता तो होगा किसी आसमाँ के तले
ख़्वाब ने रास्तों पर दिए रख दिए

मैं ने हर शाम देखा
कि तुम आए थे

और मिल कर गए
और हर शाम इक तार-ए-कफ़्श-ओ-कुलह जल गया

एक जलता हुआ सिलसिला जल गया
हाँ मगर इक दिया सा उठाए रखो

तार-ए-कफ़्श-ओ-कुलह के क़रीं
इक दिया सा जलाए रखो

आसमाँ ख़ाक-दाँ