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आशियाँ ढूँढती है | शाही शायरी
aashiyan DhunDhti hai

नज़्म

आशियाँ ढूँढती है

सबा इकराम

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थकी हारी चिड़ियों के
इक ग़ोल की तरह

जब शाम उतरी
घने बरगदों पर

मेरी कल्पनाओं के पंछी
लिए अपनी चोंचों में तिनके

उड़े उन पुर-असरार
अंधी

दिशाओं की जानिब
जहाँ आग के जंगलों में

मिरी आत्मा
कितनी सदियों से ब्याकुल

कोई आशियाँ ढूँढती है