मेरी एक ख़्वाहिश है
कोई एक नुक़्ता हो
जो वजूद की सारी
सरहदों से बाहर हो
जिस पे जा के मैं अपना
एक जाएज़ा ले लूँ
अपने-आप से हट कर
अपने-आप को देखूँ
मेरी एक ख़्वाहिश है!
नज़्म
आरज़ू
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
अब्दुल अहद साज़
मेरी एक ख़्वाहिश है
कोई एक नुक़्ता हो
जो वजूद की सारी
सरहदों से बाहर हो
जिस पे जा के मैं अपना
एक जाएज़ा ले लूँ
अपने-आप से हट कर
अपने-आप को देखूँ
मेरी एक ख़्वाहिश है!