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आप-बीती | शाही शायरी
aap-biti

नज़्म

आप-बीती

इफ़्तिख़ार आज़मी

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ज़माने के सहरा में गल्ले से बिछड़ी हुई भेड़
तन्हा पशेमाँ हिरासाँ हिरासाँ

उम्मीद ओ मोहब्बत की इक जोत आँखों में अपनी जगाए
हर इक राह-रौ की तरफ़ देखती है

कि इन में ही शायद कोई मेरे गल्ले का भी पासबाँ हो
मगर इस बयाबाँ में शायद सराब और परछाइयों के सिवा

कुछ नहीं है
मुझे कौन सीने से अपने लगाए

कि ईसा तो मुद्दत हुई आसमानों में गुम हो चुके हैं!