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आँखें दो जुडवाँ बहनें | शाही शायरी
aankhen do juDwan bahnen

नज़्म

आँखें दो जुडवाँ बहनें

सारा शगुफ़्ता

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जब हमारे गुनाहों पे वक़्त उतरेगा
बंदे खरे हो जाएँगे

फिर हम तौबा के टाँकों से
ख़ुदा का लिबास सिएँगे

तुम ने समुंदर रहन रख छोड़ा
और घोंसलों से चुराया हुआ सोना

बच्चे के पहले दिन पे मल दिया गया
तुम दुख को पैवंद करना

मेरे पास उधार ज़ियादा है और दुकान कम
आँखें दो जुड़वाँ बहनें

एक मेरे घर बियाही गई दूसरी तेरे घर
हाथ दो सौतेले भाई

जिन्हों ने आग में पड़ाव डाल रक्खा है