जिस कमरे में
तुम दोनों अब पहरों तन्हा रहते हो
उस कमरे में
ग़ौर से देखो
मेरी कितनी यादों
बातों
और किताबों के चेहरों में
हर्फ़ वफ़ा के छुपे हुए हैं
ज़ालिम गर्द पड़ी है उन पर
उस कमरे की इक इक शय को
ग़ौर से देखो
वहीं
मैं पागल
अपनी दोनों आँखें रख कर
भूल आया हूँ
नज़्म
आँखें भूल आया हूँ
मुनव्वर जमील