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आमद | शाही शायरी
aamad

नज़्म

आमद

रियाज़ लतीफ़

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हमारी साँसों की जल्वा-गह में
वो सारे चेहरे

युगों के पहरे
जो सात पानी के पार जा कर

बसे हुए हैं
फिर आज सय्याल सतह पर

झिलमिला रहे हैं
सराब के आईनों में

होना न होना अपना दिखा रहे हैं
क़रीब आ कर हमें बहुत दूर

ख़ुद से बाहर बुला रहे हैं
और हम ये चेहरे

रगों के साहिल पे नक़्श जैसे सजा चुके हैं
जहाँ हमारा कोई नहीं है

वहीं पे पहले से आ चुके हैं