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आम सा दूल्हा | शाही शायरी
aam sa dulha

नज़्म

आम सा दूल्हा

शीरीं अहमद

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आज फिर
एक लड़की

रुख़्सत हो कर जा रही है
आँखों में अपनी

सपने सजाए
सपनों के महल में

प्यार बसाए
फिर वैसा ही घर

वैसा ही चूल्हा
वैसे ही लोग

और
एक आम सा दूल्हा

दूल्हन
चाहते हुए भी महल को

क़ाएम नहीं रख पाएगी
दूल्हा

पा कर भी दूल्हन को
कभी नहीं चाहेगा