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आख़िरी सफ़र | शाही शायरी
aaKHiri safar

नज़्म

आख़िरी सफ़र

आफ़ताब शम्सी

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मुस्तक़बिल की झोली में हम गिरते रहेंगे
दाना दाना

माज़ी की लम्बी डोरी से कटते रहेंगे
लम्हा, लम्हा

आख़िर इक दिन
धागे में बिखरे दाने टूटे लम्हों का

हार पिरो कर
ताक़ में तुम सब रख दोगे!