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आख़िरी रूसूमात के दौरान | शाही शायरी
aaKHiri rusumat ke dauran

नज़्म

आख़िरी रूसूमात के दौरान

अज़रा अब्बास

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तुम्हें याद है
मोहब्बत की आख़िरी रूसूमात के दौरान

तन्हाई के एक जंगल में
मैं ने तुम्हें मोहब्बत का आख़िरी तोहफ़ा भी दिया था

मेरे कुंवारे-पन की ख़ुश्बू
तुम्हारे पसीने में गुंध गई थी

वो शाम
पहले बोसे से शुरूअ

हुई थी
और अंधेरे की नज़्र हो गई थी

लेकिन मोहब्बत
बे-साख़्तगी के इस वार पर

ख़ुश थी
मोहब्बत अपनी जीत का जश्न मना रही थी

क्या ये याद तुम्हारे लिए
एक तोहफ़ा नहीं है

जो उस दिन तुम्हें मिला था...