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आख़िरी पेड़ कब गिरेगा | शाही शायरी
aaKHiri peD kab girega

नज़्म

आख़िरी पेड़ कब गिरेगा

अख़्तर हुसैन जाफ़री

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ज़मीं की ये क़ौस जिस पे तू मुज़्तरिब खड़ी है
ये रास्ता जिस पे मैं तिरे इंतिज़ार में हूँ

ज़मीं की उस क़ौस पर उफ़ुक़ पर क़तार अंदर क़तार लम्हात के परिंदे
हमारे हिस्से के सब्ज़ पत्ते सुनहरी मिंक़ार में लिए जागती ख़लाओं में

उड़ रहे हैं
ज़मीं की उस क़ौस पर उफ़ुक़ पर है ना-बसर-कर्दा ज़िंदगी की वो फ़स्ल जिस का

हमें हर एक पेड़ काटना है
ये चाँद जिस पर क़दम है तेरा

ये शहद जिस पर ज़बाँ है मेरी
ये सब्ज़ लम्हे ये किरमक-ए-शब उसी गुलिस्ताँ के मौसम-ए-अब्र के समर हैं

जहाँ हवाओं के तेज़ तूफ़ान मुंतज़िर हैं कि आख़िरी पेड़
कब गिरेगा