मैं सौतेला बेटा
अपने बाप की तीसरी बीवी का
इन तीनों में
पहले मेरी माँ आई
फिर मैं आया
लेटा बैठा
खड़ा हुआ दीवार पकड़ कर
चलना जब आया तो माँ को रोग लगा
मेरे खिलौने
सस्ते और मिट्टी के थे
सब टूट गए
बारी बारी सब की ख़ातिर रोया मैं
लेकिन माँ के मरने पर
मैं रोया नहीं
टूटा था
और बिखरा था
जैसे मेरे खिलौने टूटे बिखरे थे
मेरा बचपन
मेरा आख़िरी खिलौना था
जिस की किर्चें
अब भी मुझ में चुभती हैं
और टूटने की आवाज़ें
गूँजती हैं
नज़्म
आख़िरी खिलौने का मातम
शकील आज़मी