EN اردو
आज फिर | शाही शायरी
aaj phir

नज़्म

आज फिर

अलीना इतरत

;

मैं आज फिर
बंद पलकों के उस पार

चाँदनी को सुलगता देख रही हूँ
मेरा जिस्म बर्फ़ की मानिंद सर्द है

मगर साँस आग बरसा रही है
और शायद

बर्फ़ हुए जिस्म में
ज्वाला-मुखी सुलगता रहेगा

हमेशा