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आईने से | शाही शायरी
aaine se

नज़्म

आईने से

अज़ीज़ क़ैसी

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आइने कुछ तो बता उन का तो हमराज़ है तू
तू ने वो ज़ुल्फ़ वो मुखड़ा वो दहन देखा है

उन के हर हाल का बे-साख़्ता-पन देखा है
वो न ख़ुद देख सकें जिस को नज़र भर के कभी

तू ने जी भर के वो हर ख़त्त-ए-बदन देखा है
उन की तंहाई का दिलदार है दम-साज़ है तू

आइने कुछ तो बता उन का तो हमराज़ है तू
क्या वो शाएर की तरह ख़ुद को कभी देखते हैं

टिकटिकी बाँध के क्या अपनी छबी देखते हैं
शोख़ मासूम जवाँ मस्त सजल बे-परवा

क्या वो ख़ुद अपने ये अंदाज़ सभी देखते हैं
इतना गुम-सुम है कि ख़ुद अपना ही अंदाज़ है तू

आइने कुछ तो बता उन का तो हमराज़ है तू
कभी घबराए हुए भी तो वो आते होंगे

दिल की धड़कन को जो रुख़्सार पे पाते होंगे
काँपता जिस्म सँभाले न सँभलता होगा

अपनी आँखों से भी ख़ुद आँख चुराते होंगे
ज़ब्त-ए-ना-काम का घबराया हुआ नाज़ है तू

आइने कुछ तो बता उन का तो हमराज़ है तू
मख़मलीं ज़ुल्फ़ बनाने वो जब आएँगे ना

पहले उस चाँद से मुखड़े की बलाएँ लेना
फिर ज़बाँ तुझ को जो मिल जाए सरगोशी में

हुस्न को और निखरने की दुआएँ देना
ख़ल्वत-ए-हुस्न में इक इश्क़ की आवाज़ है तू

आइने कुछ तो बता उन का तो हमराज़ है तो