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आईने में ख़म आया | शाही शायरी
aaine mein KHam aaya

नज़्म

आईने में ख़म आया

अशोक लाल

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दफ़अ'तन यूँही इक दिन
आईने में ख़म आया

इस तरह वो बौराया
मेरी ख़ुशनुमा सूरत

ख़ूँ से हो गई लत-पत
पैने काँच के टुकड़े

हर तरफ़ छिटकने लगे
एक टुकड़ा आवारा

जाने कैसे जा पहुँचा
याद की सवारी पर

भूले-बिसरे माज़ी पर
बिजली की तरह चमका

जब वो जा के टकराया
गुम-शुदा इक पत्थर से

उठ गए बवंडर से
एक दम ये याद आया

मैं ने ही उछाला था!
इस अना के पत्थर को

दाग़-ए-दिल के नश्तर को
वो ही लौट कर आया

आइने से टकराया
दफ़अ'तन यूँही इक दिन!