लड़की सर को झुकाए बैठी
काफ़ी के प्याले में चमचा हिला रही है
लड़का हैरत और मोहब्बत की शिद्दत से पागल
लाँबी पलकों के लर्ज़ीदा सायों को
अपनी आँख से चूम रहा है
दोनों मेरी नज़र बचा कर
इक दूजे को देखते हैं हँस देते हैं
मैं दोनों से दूर
दरीचे के नज़दीक
अपनी हथेली पर अपना चेहरा रखे
खिड़की से बाहर का मंज़र देख रही हूँ
सोच रही हूँ
गए दिनों में हम भी यूँही हँसते थे
नज़्म
आईना
परवीन शाकिर