सुनते हो इक बार वहाँ फिर हो आओ
एक बार फिर उस की चौखट पर जाओ
दरवाज़े पर धीरे धीरे दस्तक दो
जब वो सामने आए तो प्रणाम करो
''मैं कुछ भूल गया हूँ शायद'' उस से कहो
क्या भूला हूँ याद नहीं आता कह दो
उस से पूछो ''क्या तुम बतला सकती हो''
वो हँस दे तो कह दो जो कहना चाहो
और ख़फ़ा हो जाए तो ....आगे मत सोचो
नज़्म
आगे मत सोचो
मोहम्मद अल्वी