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नज़्म | शाही शायरी
aaftab aafat hai aab ke liye

नज़्म

नज़्म

मुबारक हैदर

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आफ़्ताब आफ़त है आब के लिए लेकिन
मेरे दिल के चश्मों में आफ़्ताब खिलते हैं

मेरे दिल के चश्मे जो आसमाँ के पेड़ों में
साया साया बहते हैं

धूप इन के पानी में ख़्वाब की तरह उर्यां
पर्बतों की झोली में बैठ कर नहाती है

अपने फूल से पाँव पानियों में धोती है
अर्श की निगाहों में ये मगर ख़राबी है

आसमान वालों ने दिल के हुस्न-ए-उर्यां को
वो लिबास बख़्शा है जिस के सख़्त पर्दों में

धूप भी हिजाबी है!!