दो बजने को आए हैं
और जनाज़ा भारी है
सोचता हूँ
जल्दी से जल्दी इस को
क़ब्रिस्तान में पहुँचाऊँ
मिट्टी दूँ और घर जाऊँ
और मज़े से
तली हुई मछली खाऊँ
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नज़्म
आए है बे-कसी-ए-इश्क़ पे
मोहम्मद अल्वी
नज़्म
मोहम्मद अल्वी
दो बजने को आए हैं
और जनाज़ा भारी है
सोचता हूँ
जल्दी से जल्दी इस को
क़ब्रिस्तान में पहुँचाऊँ
मिट्टी दूँ और घर जाऊँ
और मज़े से
तली हुई मछली खाऊँ