बहुत दिनों के बाद
इस शहर में भटका हुआ
बूँध बूँध बनता हुआ
मज़बूती से पकड़े हुए मुज़्महिल ज़ख़्म-आलूदा आबलों को
चला रहा था अपने काँधों पर लादे अपने नंगे सर को
मगर रास्ते के वहशी हंगामों ने मुझे तोड़ डाला
भागने के सारे रास्ते बंद
ख़ून का दबाव बढ़ने लगा
तब मेरे हाथ से वो गठरी गिर पड़ी
जिसे मैं ने बहुत सँभाल कर रखा था
और मिरे पाँव में किर्चें चुभ गईं
नज़्म
आबलों की किर्चें
खालिद गनी