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मुकालिमा ज़ैद से | शाही शायरी
mukalima zaid se

नज़्म

मुकालिमा ज़ैद से

ज़ीशान साहिल

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एक शाइ'र
और ज़ियादा शाइ'र होने में

क्या फ़र्क़ है
कोई फ़र्क़ नहीं

बस यही काफ़ी है
कि आप शाइ'र हैं

फिर भी मैं इस सूरत-ए-हाल को
वाज़ेह तौर पर समझना चाहता हूँ

लेकिन हम ये ज़रूरी नहीं समझते
हमारे लिए तो शाइ'र

ज़ियादा शाइ'र या बहुत ज़्यादा शाइ'र होना
एक ही बात है

उस का मतलब तो ये हुआ
कि सिर्फ़ शाइ'र होना

आप के लिए
कोई अहमियत ही नहीं रखता

शायद ऐसा ही हो
लेकिन आप नाराज़ न हों

अगर शाइ'र हैं तब भी
हमारे लिए

शाइ'र होना या न होना
सब बराबर है

हमें तो ये भी नहीं मा'लूम
कि शाइ'र और पुलिस वाले में से

कौन ज़ियादा हस्सास है
जिस शहर में शाइ'रों की आबादी

फ़ी-मुरब्बा कीलो-मीटर सब से ज़ियादा हो
वहाँ पुलिस वाले

शाइ'रों से ज़ियादा हस्सास हो सकते हैं
और फिर

पुलिस वालों की जान को ख़तरा भी ज़ियादा है
शाइ'र तो सिर्फ़

अपने ख़्वाबों ही को रोते रहते हैं
उन्हें किसी बात की पर्वा नहीं

मगर आप ये सब कुछ क्यूँ पूछ रहे हैं
कौन हैं आप

क्या करते हैं
कहाँ रहते हैं

मैं ख़्वाब देखता हूँ
और उन्हीं में रहता हूँ

फ़ी-मुरब्बा कीलो-मीटर
पुलिस वालों से ज़ियादा

शाइ'रों की आबादी वाले
ज़िला-ए-सत्ही की हुदूद में