लफ़्ज़-ओ-मा'नी
हमेशा से मेरे लिए
अजनबी ही रहे
गुफ़्तुगू
मेरे सर एक इल्ज़ाम है
मैं चीख़ा हूँ
रोया हूँ
सरगोशियाँ की हैं
लेकिन
किसी से
कोई गुफ़्तुगू आज तक
मैं ने की ही नहीं
नज़्म
तरदीद
मुश्ताक़ अली शाहिद
नज़्म
मुश्ताक़ अली शाहिद
लफ़्ज़-ओ-मा'नी
हमेशा से मेरे लिए
अजनबी ही रहे
गुफ़्तुगू
मेरे सर एक इल्ज़ाम है
मैं चीख़ा हूँ
रोया हूँ
सरगोशियाँ की हैं
लेकिन
किसी से
कोई गुफ़्तुगू आज तक
मैं ने की ही नहीं