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तरदीद | शाही शायरी
tardid

नज़्म

तरदीद

मुश्ताक़ अली शाहिद

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लफ़्ज़-ओ-मा'नी
हमेशा से मेरे लिए

अजनबी ही रहे
गुफ़्तुगू

मेरे सर एक इल्ज़ाम है
मैं चीख़ा हूँ

रोया हूँ
सरगोशियाँ की हैं

लेकिन
किसी से

कोई गुफ़्तुगू आज तक
मैं ने की ही नहीं