शाम-ए-तन्हा यूँही चुप-चाप अँधेरे ले कर
घर के अंदर ही चली आई है
बत्तियाँ गुल किए हम बैठे रहे
शाम को और कुछ उदास करें
रंज और ग़म को पास पास करें
नज़्म
शाम-ए-तन्हा
तरन्नुम रियाज़
नज़्म
तरन्नुम रियाज़
शाम-ए-तन्हा यूँही चुप-चाप अँधेरे ले कर
घर के अंदर ही चली आई है
बत्तियाँ गुल किए हम बैठे रहे
शाम को और कुछ उदास करें
रंज और ग़म को पास पास करें