मुझे घर जाने दो
मैं छत को जाने वाली सीढ़ी पर बैठ कर
रंग-बिरंगी पतंगों
और उड़ते हुए सफ़ेद कबूतरों को देखना चाहता हूँ
मुझे घर जाने दो
मेरे घर की पिछली गली में सरसराती ठंडी हवा
एक धानी आँचल
और खिड़कियों में सजे फूल मेरे मुंतज़िर हैं
मैं शीशम के तने पर खुदा हुआ आधा दिन
छोटे छोटे ख़्वाबों वाली संदूक़ची
और मिट्टी के आब-ख़ोरे में पड़ा वापसी का ता'वीज़
वहीं भूल आया हूँ
मुझे घर जाने दो
नज़्म
आधे रास्ते में
ज़ाहिद मसूद