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अक्स | शाही शायरी
aks

नज़्म

अक्स

याक़ूब राही

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जब भी धरती का कोई हिस्सा
तुम्हें चुप सा दिखाई दे तो उस की ख़ामुशी को

बे-हिसी को नाम मत दो
सर्द गहरी ख़ामुशी का कर्ब समझो

उस के सीने में दबे लावे की ज़िंदा धड़कनों का अक्स
मुमकिन है

तुम्हें ख़ुद अपने आदर्शों में रह रह कर नज़र आए