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आबाई घर | शाही शायरी
aabai ghar

नज़्म

आबाई घर

तरन्नुम रियाज़

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मातमी शाम उतर आई है फिर बाम तलक
घर की तन्हाई को बहलाए कोई कैसे भला

अपने ख़्वाबों के तआ'क़ुब में गए उस के मकीं
मुंतज़िर हैं ये निगाहें कि हैं बुझते से दिए

राह तकने के लिए कोई बचेगा कब तक
फिर ये दीवारें भी ढह जाएँगी