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शाइ'र | शाही शायरी
shair

नज़्म

शाइ'र

मुश्ताक़ अली शाहिद

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इस नज़्म में तरमीम की कोई गुंजाइश न थी
इस नज़्म की तख़्लीक़ पर वो बहुत ख़ुश था

फिर भी
इशाअत के लिए रवाना करने से क़ब्ल

उस ने नज़्म के आख़िरी मिसरे
बदल डाले