इस नज़्म में तरमीम की कोई गुंजाइश न थी
इस नज़्म की तख़्लीक़ पर वो बहुत ख़ुश था
फिर भी
इशाअत के लिए रवाना करने से क़ब्ल
उस ने नज़्म के आख़िरी मिसरे
बदल डाले
नज़्म
शाइ'र
मुश्ताक़ अली शाहिद
नज़्म
मुश्ताक़ अली शाहिद
इस नज़्म में तरमीम की कोई गुंजाइश न थी
इस नज़्म की तख़्लीक़ पर वो बहुत ख़ुश था
फिर भी
इशाअत के लिए रवाना करने से क़ब्ल
उस ने नज़्म के आख़िरी मिसरे
बदल डाले