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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

ज़ाहिद डार

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ज़िंदगी एक ख़्वाब है
मेरे लिए मोहब्बत का तवील और अज़िय्यत-नाक ख़्वाब

मैं दुनिया के हंगामों से ग़ाफ़िल हूँ
इंसानों का शोर मेरी ज़ात की सरहदों पर रुक जाता है

अंदर आना मनअ' है
मेरे दिल का दरवाज़ा बंद है

मेरा कोई घर नहीं
मैं अपने पागल-पन के रेगिस्तान में भटक रहा हूँ

मैं अपने अंदर सफ़र कर रहा हूँ
मैं बाहर नहीं निकल सकता

मैं अपनी ख़्वाहिश के मुताबिक़ अमल नहीं कर सकता
मैं बर्ज़ख़ में हूँ

जन्नत और जहन्नम बाहर हैं
मेरे लिए बाहर सिर्फ़ एक औरत है

दुनिया मेरे लिए नहीं है
मैं अपनी तन्हाई में क़ैद हूँ

हक़ीक़त से बे-ख़बर और ग़ाफ़िल
एक औरत के ख़याल में खोया हुआ

मोहब्बत के तवील और अज़िय्यत-नाक ख़्वाब में मुब्तला
ये मुसलसल जाँ-कनी की हालत

क्या ये ज़िंदगी है