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एक रात सफ़ेद गुलाबों वाले तालाब के पास | शाही शायरी
ek raat safed gulabon wale talab ke pas

नज़्म

एक रात सफ़ेद गुलाबों वाले तालाब के पास

तबस्सुम काश्मीरी

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वो एक शब थी सफ़ेद गुलाबों वाले तालाब के बिल्कुल नज़दीक
बादलों की पहली आहट पर

उस ने रख दिए होंट होंटों पर
मौसीक़ी की तितली गीत गाने लगी

उस के साँसों के आस-पास
उस की ख़ुशबुओं के घुंघरू

बज रहे थे उस शब
हुआ की सफ़ेद गुलाबी छतों पर

वो उमड रही थी
एक तेज़ समुंदरी लहर की तरह

वो जिस्म पर नक़्श हो रही थी
तितलियों से भरे हुए एक ख़्वाब की तरह

वो एक शब सफ़ेद गुलाबों वाले तालाब के बिल्कुल नज़दीक
शब-भर बादलों की हल्की और तेज़ आहटें

और शब-भर
होंट होंटों पर

साँस साँसों पर
और जिस्म जिस्म की सफ़ेद गुलाबी छतों पर