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24-वाँ साल | शाही शायरी
24-wan sal

नज़्म

24-वाँ साल

वर्षा गोरछिया

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सेवइयाँ खाने का
मन करता है

कब हारे में रखी
हांडी उतरेगी

कब माँ
सेवइयाँ परोसेगी

कब से
थाली लिए खड़ी हूँ

पहले धुआँ गहरा था
आँखों में चुभता था

खारा था बहुत
अब हल्का है

झीना है
ख़ुशबू आती है धुएँ से

गुर गुर की आवाज़ें
आने लगी है माँ

हांडी उतार लो
सेवइयाँ पक गई हैं