नीली नीली शाम की ख़ामोशियों के बीच
क्या सरगोशियाँ सी करते हैं शाख़ों से ये पत्ते
झुका है गुल कली के रुख़ पे सारी ख़ुशबुएँ ले कर
बिखेरे ज़ुल्फ़ सूरज की तरफ़ चल दी है इक बदली
हवा अठखेलियाँ करती है रुक रुक कर दरख़्तों से
ज़मीं को आसमाँ ने ले लिया अपनी पनाहों में
तुम आ जाते अगर घर आज जल्दी
मुझ को भी तुम से ज़रूरी बात करना थी
नज़्म
ज़रूरी बात
तरन्नुम रियाज़