यहाँ तक हम आ गए हैं 
और हाँ तुम्हारा पता इन्हीं लोगों से मालूम हुआ जो मर चुके थे 
जब हम चले थे तो आधी उम्र बिताने के पछतावे के सामने दिन डूब रहा था 
एक घोड़ा खड़ा था 
और हाँप रहा था 
एक मिनट ठहरो मैं थोड़ी सी चाय पी लूँ तो आगे बढ़ूँ 
मेरे हाथ में ये जो सफ़ेद काग़ज़ है इसे तुम्हारी हिमाक़त नहीं छीन सकती 
और न हवा उड़ा सकती है 
अगर तुम तैरना जानते हो तो ज़िंदगी बहुत बुरी होते हुए भी बहुत बुरी नहीं 
तुम बिना थके हुए भी कई साल तक तैर सकते हो 
अगर तुम्हारे दिल में एक याद भी बाक़ी है 
तो जुगनुओं से भरे हुए जंगल इस दुनिया में अब भी हैं 
एक जुगनू कहीं से पकड़ लो 
और उसे अपनी जेब में रख लो 
और अँधेरे में चलो 
रौशनी तुम्हारी जेब से छन-छन के रास्ता समझाएगी 
मगर सुनो 
जब रास्ता मिल जाए तो जुगनू को छोड़ देना 
आज़ाद कर देना
        नज़्म
1973 की एक नज़्म
अहमद हमेश

