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16 | शाही शायरी
16

नज़्म

16

ज़ीशान साहिल

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हवा चली
तो शाम आसमान से

गली के तंग मोड़ तक
तमाम रंग छोड़ कर

बहुत उदास हो गई
सियाह रात के लिए

न इस के पास ख़्वाब थे
न इस के पास रौशनी

न इस का कोई मकान था
न कोई साएबान था

वो पानियों से दूर थी
थकी हुई उदास शाम

हवा चली तो रात में
जहाँ उसे जगह मिली

वो ख़ामुशी से सो गई