हवा चली
तो शाम आसमान से
गली के तंग मोड़ तक
तमाम रंग छोड़ कर
बहुत उदास हो गई
सियाह रात के लिए
न इस के पास ख़्वाब थे
न इस के पास रौशनी
न इस का कोई मकान था
न कोई साएबान था
वो पानियों से दूर थी
थकी हुई उदास शाम
हवा चली तो रात में
जहाँ उसे जगह मिली
वो ख़ामुशी से सो गई
नज़्म
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ज़ीशान साहिल