ये एहसास
कि इक ज़ी-रूह
मिरी आवाज़ के शोले से
जल सकता है
ख़ामोशी के रेशम से
कट सकता है
इतना जाँ-परवर है कि आँखें
बंद हुई जाती हैं ख़ुशी से
भीगी जाती हैं
नज़्म
1
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
ये एहसास
कि इक ज़ी-रूह
मिरी आवाज़ के शोले से
जल सकता है
ख़ामोशी के रेशम से
कट सकता है
इतना जाँ-परवर है कि आँखें
बंद हुई जाती हैं ख़ुशी से
भीगी जाती हैं