EN اردو
1 | शाही शायरी
1

नज़्म

1

साक़ी फ़ारुक़ी

;

ये एहसास
कि इक ज़ी-रूह

मिरी आवाज़ के शोले से
जल सकता है

ख़ामोशी के रेशम से
कट सकता है

इतना जाँ-परवर है कि आँखें
बंद हुई जाती हैं ख़ुशी से

भीगी जाती हैं