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बाज़-गश्त | शाही शायरी
baz-gasht

नज़्म

बाज़-गश्त

याक़ूब राही

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गुज़िश्ता रात
मैं ख़्वाबों की दुनिया से

पलट आया तो रस्ते में तुम्हारी खोज में निकली
मिरी आवाज़ रह रह कर

सुनाई दी