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दिल्ली और हम | शाही शायरी
dilli aur hum

नज़्म

दिल्ली और हम

तालिब चकवाली

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ये वो दिल्ली है कि दिल से जिस के दीवाने हैं हम
ये वो शम-ए-ज़िंदगी है जिस के परवाने हैं हम

आइना है हम से उस के अहद-ए-ज़र्रीं की झलक
उस के तहज़ीब-ओ-अदब के आईना-ख़ाने हैं हम

इल्म-ओ-फ़न के मोतियों पे जम गया गर्द-ओ-ग़ुबार
ख़ाक के ज़र्रात में मल्बूस दुरदाने हैं हम

हम पे रहती है निगाह-ए-शफ़क़त-ए-अहल-ए-नज़र
महफ़िल-ए-शेर-ओ-अदब में जाने-पहचाने हैं हम

हाज़िर-ए-ख़िदमत किया है जौहर-ए-क़ल्ब-ओ-दिमाग़
कम-निगाहों की नज़र में फिर भी बेगाने हैं हम

अब तो ख़्वेश वग़ैरा कहते हैं हमें कुछ और ही
जब तो इक दुनिया समझो थी कि फ़रज़ाने हैं हम

तमकनत 'सौदा' की 'तालिब' 'मीर' का रखते हैं 'दर्द'
बाग़ तो जाने है सारा पर न कुछ जाने हैं हम