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ज़्यादा कुछ नहीं मर जाएँगे किसी दिन हम | शाही शायरी
zyaada kuchh nahin mar jaenge kisi din hum

ग़ज़ल

ज़्यादा कुछ नहीं मर जाएँगे किसी दिन हम

ख़लील मामून

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ज़्यादा कुछ नहीं मर जाएँगे किसी दिन हम
हर एक शय से मुकर जाएँगे किसी दिन हम

हर एक जगह भटकते फिरेंगे सारी उम्र
बिल-आख़िर अपने ही घर जाएँगे किसी दिन हम

न देख रोज़ हक़ारत से इस क़दर हम को
कोई तो काम भी कर जाएँगे किसी दिन हम

तुम्हारी राह में हर चीज़ तो लुटा डाली
ये जिस्म-ओ-जान भी धर जाएँगे किसी दिन हम

तमाशा लफ़्ज़ ओ बयाँ का भी कब तलक 'मामून'
कि जिस्म-ओ-जाँ से उतर जाएँगे किसी दिन हम