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ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी | शाही शायरी
zulmat-e-shab hi sahar ho jaegi

ग़ज़ल

ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी

सिकंदर अली वज्द

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ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी
शिद्दत-ए-ग़म चारागर हो जाएगी

रोने वाले यूँ मुसीबत पर न रो
ज़िंदगी इक दर्द-ए-सर हो जाएगी

बाद-ए-तामीर-ए-मकाँ ज़ंजीर-ए-ग़म
उल्फ़त-ए-दीवार-ओ-दर हो जाएगी

ला दलील-ए-इश्क़-ओ-मस्ती दरमियाँ
ख़त्म बहस-ए-ख़ैर-ओ-शर हो जाएगी

ज़िक्र अपना जा-ब-जा अच्छा नहीं
सब कहानी बे-असर हो जाएगी

सुब्ह-ए-राहत के तसव्वुर के तुफ़ैल
हर शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाएगी

सिर्फ़-ओ-अज़्म-ए-आतशीं दरकार है
उम्र सरगर्म-ए-सफ़र हो जाएगी

आ रहा है इंक़िलाब-ए-हश्र-ख़ेज़
ज़िंदगी ज़ेर-ओ-ज़बर हो जाएगी