ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे
जाम फिर आँखों के मय-ख़ाने से भर भर कर दे
बुझ गई शम्अ की लौ तेरे दुपट्टे से तो क्या
अपनी मुस्कान से महफ़िल को मुनव्वर कर दे
होश तो उड़ गए आँखों से ही पी कर साक़ी
अब ज़रा वो भी पिला दे जो गला तर कर दे
ग़ैर को मुँह न लगा होश में हूँ जब तक मैं
इतना एहसान मिरे साक़िया मुझ पर कर दे
बे-मुरव्वत हैं बड़े पी के भी हैं होश में जो
ऐसे मय-ख़्वारों को मय-ख़ाने से बाहर कर दे
शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
ऐ 'सदा' क़ैद तू कूज़े में समुंदर कर दे
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे
सदा अम्बालवी