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ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक | शाही शायरी
zor yaro aaj humne fath ki jang-e-falak

ग़ज़ल

ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक
यक तमांचे में कबूदी कर दिया रंग-ए-फ़लक

गर्मी-ए-दूकाँ पर अपनी शीशागर सरकश न हो
ढूँढता फिरता है तेरे सर के तईं संग-ए-फ़लक

कज-रवी से उस की गर आक़िल है तू ग़ाफ़िल न रह
इन दिनों और ही नज़र आता है कुछ ढंग-ए-फ़लक

तू जो तुल बैठे तो पल्ले चाहिए हों महर-ओ-माह
ऐसी मीज़ाँ के तईं लाज़िम है पासंग-ए-फ़लक

शौक़ है गर सैर-ए-बाला का तो 'हातिम' हो सवार
कहकशाँ से खींच कर लाया हूँ अब तंग-ए-फ़लक