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ज़ोर-ओ-ज़र का ही सिलसिला है यहाँ | शाही शायरी
zor-o-zar ka hi silsila hai yahan

ग़ज़ल

ज़ोर-ओ-ज़र का ही सिलसिला है यहाँ

अकबर हमीदी

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ज़ोर-ओ-ज़र का ही सिलसिला है यहाँ
लफ़्ज़ को कौन पूछता है यहाँ

पहला तो अब किसी जगह भी नहीं
जिस तरफ़ देखो दूसरा है यहाँ

रात दिन फिर रहा हूँ गलियों में
मेरा इक शख़्स खो गया है यहाँ

सेहर है या तिलिस्म है क्या है
हर कोई राह भूलता है यहाँ

हर कहीं सच ही बोलना चाहे
शायद 'अकबर' नया नया है यहाँ