ज़ियाँ है जान का ये कारोबार मत करना
सबा से साए से ख़ुश्बू से प्यार मत करना
हमें वहाँ के बगूले बने जो कहते थे
तवाफ़-ए-कूचा-ए-शहर-ए-निगार मत करना
मैं ढलती धूप की लौ हूँ मिरा भरोसा क्या
निगाह-ए-शाम मिरा इंतिज़ार मत करना
न ख़ुद तुम्हीं पे कुछ इल्ज़ाम-ए-वक़्त आ जाए
हमारा शिकवा-ए-सब्र-ओ-क़रार मत करना
ये सच है इश्क़ ही साबित-क़दम नहीं मेरा
मैं कह रहा हूँ मिरा ए'तिबार मत करना
अभी है कू-ब-कू फिरना तुझे 'मुसव्विर' अभी
उमीद-ए-साया-ए-दीवार-ए-यार मत करना
ग़ज़ल
ज़ियाँ है जान का ये कारोबार मत करना
मुसव्विर सब्ज़वारी