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ज़ियाँ है जान का ये कारोबार मत करना | शाही शायरी
ziyan hai jaan ka ye karobar mat karna

ग़ज़ल

ज़ियाँ है जान का ये कारोबार मत करना

मुसव्विर सब्ज़वारी

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ज़ियाँ है जान का ये कारोबार मत करना
सबा से साए से ख़ुश्बू से प्यार मत करना

हमें वहाँ के बगूले बने जो कहते थे
तवाफ़-ए-कूचा-ए-शहर-ए-निगार मत करना

मैं ढलती धूप की लौ हूँ मिरा भरोसा क्या
निगाह-ए-शाम मिरा इंतिज़ार मत करना

न ख़ुद तुम्हीं पे कुछ इल्ज़ाम-ए-वक़्त आ जाए
हमारा शिकवा-ए-सब्र-ओ-क़रार मत करना

ये सच है इश्क़ ही साबित-क़दम नहीं मेरा
मैं कह रहा हूँ मिरा ए'तिबार मत करना

अभी है कू-ब-कू फिरना तुझे 'मुसव्विर' अभी
उमीद-ए-साया-ए-दीवार-ए-यार मत करना