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ज़िंदगी राह-ए-वफ़ा में जो मिटा देते हैं | शाही शायरी
zindagi rah-e-wafa mein jo miTa dete hain

ग़ज़ल

ज़िंदगी राह-ए-वफ़ा में जो मिटा देते हैं

गुलज़ार देहलवी

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ज़िंदगी राह-ए-वफ़ा में जो मिटा देते हैं
नक़्श उल्फ़त का वो दुनिया में जमा देते हैं

इस तरह जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा देते हैं
वो जिसे अपना समझते हैं मिटा देते हैं

एक जुल रोज़ हमें आप नया देते हैं
वादा-ए-वस्ल को बातों में उड़ा देते हैं

ख़ुम-ओ-मीना-ओ-सुबू बज़्म में आते आते
अपनी आँखों से कई जाम पिला देते हैं

हुस्न का कोई जुदा तो नहीं होता अंदाज़
इश्क़ वाले उन्हें अंदाज़ सिखा देते हैं

कोसने देते हैं जिस वक़्त बुतान-ए-तन्नाज़
हाथ उठाए हुए हम उन को दुआ देते हैं

मेरे ख़्वाबों में भी आते हैं अदू के हमराह
ये वफ़ाओं का मिरी आप सिला देते हैं

हालत-ए-ग़ैर पे यूँ ख़ैर से हँसने वाले
इस तवज्जोह की भी हम तुम को दुआ देते हैं

शहर में रोज़ उड़ा कर मिरे मरने की ख़बर
जश्न वो रोज़ रक़ीबों का मना देते हैं

दैर-ओ-का'बा हो कलीसा हो कि मय-ख़ाना हो
सब हर इक दर पे तुझी को तो सदा देते हैं

इश्वा-ओ-हुस्न-ओ-अदा पर तिरी मरने वाले
कितने मा'सूम यूँही उम्र गँवा देते हैं

पए गुल-गश्त वो गुल-पोश जो आए 'गुलज़ार'
ज़िंदगी सब्ज़े के मानिंद बिछा देते हैं