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ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा | शाही शायरी
zindagi kya hai jo dil ho tashna-e-zauq-e-wafa

ग़ज़ल

ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा

अख़्तर अली अख़्तर

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ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा
या'नी ये पर्दा तो उठ सकता है आसानी के साथ

गुफ़्तुगू-ए-सूरत-ओ-मानी है उनवान-ए-हयात
खेलते हैं वो मिरी फ़ितरत की हैरानी के साथ

तुम ने हर ज़र्रे में बरपा कर दिया तूफ़ान-ए-शौक़
इक तबस्सुम इस क़दर जल्वों की तुग़्यानी के साथ

दिल की आबादी है 'अख़्तर' दिल की बर्बादी का नाम
इक तअ'ल्लुक़ है मिरी हस्ती को वीरानी के साथ