ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा
या'नी ये पर्दा तो उठ सकता है आसानी के साथ
गुफ़्तुगू-ए-सूरत-ओ-मानी है उनवान-ए-हयात
खेलते हैं वो मिरी फ़ितरत की हैरानी के साथ
तुम ने हर ज़र्रे में बरपा कर दिया तूफ़ान-ए-शौक़
इक तबस्सुम इस क़दर जल्वों की तुग़्यानी के साथ
दिल की आबादी है 'अख़्तर' दिल की बर्बादी का नाम
इक तअ'ल्लुक़ है मिरी हस्ती को वीरानी के साथ
ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा
अख़्तर अली अख़्तर